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संवादात्मक सत्र - “बदलते परिदृश्य में हिंदी : अस्मिता ही नहीं अस्तित्व का सवाल”


"हृदय की कोई भाषा नहीं है 
हृदय हृदय से बातचीत करता है
और हिंदी हृदय की भाषा है।"

इस विचार को ध्यान में रखते हुए द डिस्कोर्स , "बदलते परिदृश्य में हिंदी : अस्मिता ही नहीं अस्तित्व का सवाल" इस संवादात्मक सत्र के सफलतापूर्वक समापन पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है। 

सत्र की शुरुआत हिंदी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रियंका सोनकर जी के साथ हुई जिन्होंने हिंदी भाषा के महत्व, विश्व में हिंदी का विस्तृत स्वरूप और हिंदी को रोजगार के साथ जोड़कर अपने बहुमूल्य विचार साझा किये। इस संवादात्मक सत्र को प्रभावशाली और उत्साहपूर्ण बनाने के लिए हम उनका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।

साथ ही आज के कार्यक्रम को सरस्वती वंदना के साथ उसकी सफलता तक पहुंचाने के लिए सभी वक्ताओं एवं श्रोताओं का धन्यवाद करते हैं।

द डिस्कोर्स आप सभी के सहयोग से ऐसे ही और कार्यक्रम भविष्य आयोजित करने की आशा करता है।

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सम्मान से , 
द डिस्कोर्स
एक छात्र केन्द्रित सोसायटी (बी.एच.यू.)